कोरोना की चपेट में आने के बाद जरूरी नहीं कि शरीर में एंटीबॉडी बनें
सेहतराग टीम
कोरोना की चपेट में आने वाले लोग अगर ये सोच रहे हैं कि उनके भीतर एंटीबॉडीज बन गई है और वो पूरी तरह सुरक्षित है तो ऐसा नहीं हैं। संक्रमण की चपेट में आए हर व्यक्ति में एंटीबॉडीज बने ये जरूरी नहीं है।
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ब्रिटेन में ऐसे मामले सामने आ चुके है। ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के वायरस एक्सपर्ट डॉक्टर साइमन क्लार्क का कहना है कि संक्रमण की चपेट में आने वाले कुछ लोगों की एंटीबॉडी जांच गई तो पता चला कि उनका शरीर वायरस के लिए इम्यून नहीं हुआ है क्योंकि संक्रमण के बाद उनमें एंटीबॉडीज नहीं बनी हैं। ऐसे में संक्रमण की संभावना के बाद जिनमें एंटीबॉडीज नहीं बनी है उनमें दोबारा संक्रमण की संभावना हो सकती है। कई अध्ययनों से पता चला है कि दस में से एक कोरोना मरीज में पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज नहीं बनती है।
एंटीबॉडीज बनने में लग सकते है पचास दिन
लंदन के फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के इम्युनोलॉजिट डॉक्टर रूपर्ट बील का कहना है कि संक्रमित के ठीक होने के बाद एंटीबॉडीज बनने में कम से कम पचास दिन लग सकते हैं। इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन के प्रोफेसर डॉक्टर डैनी ऑल्टमैन के मुताबिक, दस में से एक में ऐसी संभावना रहती है जिसमें एंटीबॉडीज न बने या उसका स्तर कम हो।
वायरल लोड पर एंटीबॉडीज की निर्भरता
वैज्ञानिकों का कहना है कि संक्रमण का स्तर क्या था? लक्षण किस तरह के थे और रोग की गंभीरता क्या थी इस आधार पर भी शरीर में एंटीबॉडीज बनती है। शरीर में वायरल लोड जितना अधिक होगा एंटीबॉडीज का स्तर उतना अधिक हो सकता है। हां ये जरूर है कि एंटीबॉडीज ही सबकुछ नहीं होती है जिससे इम्यूनिटी तय होती है। दूसरी कोशिकाओं का सक्रिय होना भी जरूरी है जिसे मोमोरी सेल्स कहते है।
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